Wednesday, June 22, 2005

अबला,या बला?

जा बक्श िदया खुदा अाज तुझे
िक तूने खुबसूरत अौरत ज़ात बनाई
िजस बला को तू न झेल सका,
हम पे थोप कर अपनी खुदाई जताई

िजस बेरहमी से तूने गम-ए-दुिनया रचाई
उसी हमदर्दी से अारामगार नींद भी बनाई
िजस गलती को अौरत कहके सजाई
उसे भुलाने के िलये शराब भी बनाई

3 Comments:

At 4:37 AM, Blogger Aakarsh said...

wah!kya baat hai!! lekin..iske peeche kyaa kahani hain??? just curious..

 
At 5:56 AM, Blogger Sketchy Self said...

खुदाई रचाने वाले का शुक्र है जो आप यहाँ तशरीफ लाए
िक आप औरत जात की तरह बेवफा नहीं कहलाए !!

 
At 7:10 AM, Blogger Gandaragolaka said...

I thought you might have figured it out by now... I know more about you than you might think...

Chandu:
Nice couplet!

Kedar.

 

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