अबला,या बला?
जा बक्श िदया खुदा अाज तुझे
िक तूने खुबसूरत अौरत ज़ात बनाई
िजस बला को तू न झेल सका,
हम पे थोप कर अपनी खुदाई जताई
िजस बेरहमी से तूने गम-ए-दुिनया रचाई
उसी हमदर्दी से अारामगार नींद भी बनाई
िजस गलती को अौरत कहके सजाई
उसे भुलाने के िलये शराब भी बनाई
3 Comments:
wah!kya baat hai!! lekin..iske peeche kyaa kahani hain??? just curious..
खुदाई रचाने वाले का शुक्र है जो आप यहाँ तशरीफ लाए
िक आप औरत जात की तरह बेवफा नहीं कहलाए !!
I thought you might have figured it out by now... I know more about you than you might think...
Chandu:
Nice couplet!
Kedar.
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