Saturday, June 25, 2005

दुिनया का खेल (...जारी है)

िदल की पूरी भडास िनकाल तो लें,क्या पता िफर कब मौका िमले--

दुिनया का खेल (...जारी है)

वो भी एक िदन था,ईद से कुछ कम नही
अौर अाज भी एक िदन है,िसर्फ मातम का ही
तौहीन िकये जाने पर जो हमदर्दी नसीब होती
तारीफ करने पर वो भी जाती रही

हा ये सच है,िक हमारे दम पे दुिनया चलती नही
और ये भी,िक हमारे िबना भी सब कुछ है सही
पर एक बात पे ज़माने पे तरस खाता हू
हमारे िबना अक्लमंदों के माइने ही नही

हम इस हाल को भी अाराम से झेल लेते
हमारे बदिकस्मती पर यू न रो लेते
गर हमे इस बात का डर ना होता िक
क्या पता हम कल क्या कहलाए जाए

Kedar.

5 Comments:

At 1:00 AM, Anonymous Anonymous said...

Like the design but don´t understand the txt :)

 
At 6:58 AM, Blogger Gandaragolaka said...

well... you have to read the history to understand this.

 
At 2:50 PM, Blogger palamoor-poragadu said...

or you have to ask me what is it about...

is it not kedar?

 
At 2:57 PM, Blogger palamoor-poragadu said...

बस इतना कह सकता हूं कि...

खामोशी हो सकती है हमारे बीच पर फरामोशी नही...

 
At 3:58 AM, Blogger Gandaragolaka said...

never saw this one!

good one there!

 

Post a Comment

<< Home