दुिनया का खेल (...जारी है)
िदल की पूरी भडास िनकाल तो लें,क्या पता िफर कब मौका िमले--
दुिनया का खेल (...जारी है)
वो भी एक िदन था,ईद से कुछ कम नही
अौर अाज भी एक िदन है,िसर्फ मातम का ही
तौहीन िकये जाने पर जो हमदर्दी नसीब होती
तारीफ करने पर वो भी जाती रही
हा ये सच है,िक हमारे दम पे दुिनया चलती नही
और ये भी,िक हमारे िबना भी सब कुछ है सही
पर एक बात पे ज़माने पे तरस खाता हू
हमारे िबना अक्लमंदों के माइने ही नही
हम इस हाल को भी अाराम से झेल लेते
हमारे बदिकस्मती पर यू न रो लेते
गर हमे इस बात का डर ना होता िक
क्या पता हम कल क्या कहलाए जाए
Kedar.
5 Comments:
Like the design but don´t understand the txt :)
well... you have to read the history to understand this.
or you have to ask me what is it about...
is it not kedar?
बस इतना कह सकता हूं कि...
खामोशी हो सकती है हमारे बीच पर फरामोशी नही...
never saw this one!
good one there!
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