प्यार की लौ
िरशतों के ये भूखे साये साथ न मेरा छोडेंगे ।
जबतक मैं हूँ , जबतक लौ है, साये तो रहेंगे ही !
लेकिन जब मैं खुद जलूँगा बनके प्यार का रौशन सूरज,
तब मैं रहूँगा न लौ रहेगी , और न ये साये रहेंगे
बस, हर तरफ सागर सी िवस्तृत प्यार की एक सी धारा होगी।
2 Comments:
baap re baap!! poetry in this form...captivates me more...chandu! what r u doing there in US..doing masters/phds or whatever...
the first part somehow reminds me of ur comment on "divorce" poem of Ravi a while ago.
But the second part...super! If being the One is like being in love, then you are not the One.. you are the Matrix and everything outside!
Post a Comment
<< Home