Tuesday, August 16, 2005

कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया

आकर्ष ने कभी "हम दोनों" चलिचत्र का िज़क्र िकया था...और मुझे याद आया...

कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया --x2
बात िनकली तो हरेक बात पे रोना आया
कभी खुद पे...

हम तो समझे थे के हम भूल गये हैं उनको --x2
क्या हुआ आज ये िकस बात पे रोना आया
कभी खुद पे...

िकसिलए जीते हैं हम, िकस के िलए जीते हैं --x2
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया
कभी खुद पे...

कौन रोता है िकसी और की खाितर ऐ दोस्त --x2
सबको अपनी ही िकसी बात पे रोना आया
कभी खुद पे...

6 Comments:

At 7:02 AM, Blogger Aakarsh said...

sahirji ko salaam karo..humdono ke saare gaane mein unhone kamaal kardiye..
romance oozing out of "abhi na jaao chod kar"...
for that matter, sahir was an athiest..and yet, he could write "allah tero naam" (monumental song it is.)
aaj kar aise geethkaar kahan milthe hain!!
chandu! shukhriya..is geet ko yaad karne ke liye..

 
At 6:38 PM, Anonymous Anonymous said...

the sad part about quantifying how much i feel for this song is the existence of a word called - speechless. The irony.

prc

 
At 10:01 AM, Blogger Kaul said...

स्वागत है एक नए ब्लॉग का। कृपया ध्यान दें -- आप की मात्राएँ इधर-उधर जा रही हैं, ख़ासकर "ि" की मात्रा अक्षर के बाद लगनी चाहिए, वह पहले लग रही है। साइडबार में "किडयां" की जगह "कड़ियाँ" लिखें। यहाँ भी जाएँ।

 
At 11:38 AM, Blogger Sketchy Self said...

कौल साहब धन्यवाद।
यह मात्राओं की समस्या मेरे मोजिल्ला फायरफाक्स के प्रयोग की वजह से खडी हुई है। अबसे ध्यान रहेगा कि ऐसा दोबारा न हो।

 
At 3:49 AM, Blogger T.Padmhasini said...

A good blog. Do you write Urdu or Hindi sheren RW? May I know your name? If I am permitted and if so can I address so? A good change for me to go through this blog.
Thank you.

 
At 3:49 AM, Blogger T.Padmhasini said...

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