उडान
लम्हों के वीरान ज़मी पर
अश्कों की बारिश आ गई --
लो इस दिल में तुम्हें दोबारा
पाने की ख्वाहिश आ गई ।
सपने की भाँति आखों से
ओझल होकर चले गए
क्षितिज के उस पार तुम कोई
बादल बनकर चले गए
पर चाँद घटा में छुप जाए
तो अमावस नहीं कहलाएगा
प्यार का ये परिंदा तुमको
हर हाल में ढूँढ ही लाएगा ।
पहलू में फिर तेरी तबस्सुम
उठाने रंजिश आ गई --
और इस दिल में तुम्हे दोबारा
पाने की ख्वाहिश आ गई ।
4 Comments:
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dastarkhaan-e-ishq par hum der se pahonche, bach gaye!
hum kis khuraaq se mehroom rahe , yeh jaanane se bach gaye!
बहुत ख़ूब, केदार साहब -- !
अच्छा हुआ जो आप अभी उतरे नहीं मैदान में
तारीख़ से अब कई मजनू फना होने से बच गए !!
nice reply.
high hopes though!
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