Thursday, July 21, 2005

ब्रेथलेस -- २

अब जो मेरे िदन और अब जो मेरी रातें हैं,
उनमें िसर्फ आँसू हैं , उनमें िसरफ दर्द की , रंझ की बातें हैं
और फिरयादें हैं, मेरा अब कोई नहीं,
मैं हूँ और खोए हुए प्यार की यादें हैं

डूब गया है िदल गम के अंधेरे में, मेरी सारी दुिनया है दर्द के घेरे में,
मेरे सारे गीत ढले आहों में, बनके दीवाना अब यहाँ-वहाँ िफरता हूँ
ठोकरें खाता हूँ उन राहों में

जहाँ उसे देखा था, जहाँ उसे चाहा था, जहाँ मैं हँसा था और बाद में रोया था,
जहाँ उसे पाया था पाके िफर खोया था - जहाँ कभी फूलों के किलयों के साये थे
रंगीं-रंगीं महकी रुत ने हर एक कदम पे रास रचाए थे
गुलशन-गुलशन, िदन में उजाले थे जगमग-जगमग
नूर था रातों में िझलिमल-िझलिमल

जहाँ मैंने खाबों की देखी थी मंिजल, जहाँ मेरी कश्ती ने
पाया था सािहल, जहाँ मैंने पाई थी पलकों की छाँव,
जहाँ मेरी बाहों में कल थी िकसी की मरमरी बाहें,
जहाँ एक चहरे से हटती नहीं थी मेरी िनगाहें
जहाँ कल नरमी ही नरमी थी पय्ार ही प्यार था बातों में
हाथ थे हाथों में, जहाँ कल गाये थे प्रेम तराने, िकसी को सुनाये थे िदल के फसाने
जहाँ कभी खाई थी जीने की मरने की कसमें, तोड दी दुिनया की सारी रस्में
जहाँ कभी बरसा था प्रीत का बादल, जहाँ मैंने थामा था कोई आँचल
जहाँ पहली बार हुआ था मैं पागल

अब उन राहों में कोई नहीं है, अब हैं वो राहें वीरां-वीरां, िदल भी है जैसे हैरां-हैरा
जाने कहाँ गया मेरे सपनों का मेला - ऐसे ही खयालों में खोया-खोया
घूम रहा था मैं कबसे अकेला -

चमका िसतारा जैसे कोई गगन में, गूँजी सदा कोई मन-आँंगन में
िकसी ने पुकारा मुझे, मुडके जो देखा मैंने
िमल गया खोया हुआ िदल का सहारा मुझे
िजसे मैंने चाहा था , िजसे मैंने पूजा था , लौटके आया है
थोडा शरिमंदा है , थोडा घबराया है
जुल्फें परेशां हैं, काँपते होंठ और भीगी हुई आँखें हैं
देख रहा मुझे गुमसुम-गुमसुम, उसकी नजर जैसे पूछ रही हो -
"इतना बता दो कहीं खफा तो नहीं तुम?"

प्यार जो देखा उसने मेरी िनगाहों में, अगले ही पल था वो मेरी इन बाहों में
भूल गया मेरा िदल जैसे हर दम, बदल गया जैसे दुिनया का मौसम
झूमे नजारे और झूमी हवाएँ और झूमे चमन और झूमी िपजाएँ
जैसे िफर कहने लगी सारी िदशाएँ
िकतनी हसीं और िकतनी सुहानी
हम दोनो की प्रेम कहानी --- ३

Tuesday, July 19, 2005

ब्रेथलेस

न जाने क्यों एक बार िफर शंकर महादेवन और जावेद अखतर की इस सुनहरी भेंट पर मन जा अटका है। और क्योंिक यहाँ गानों की बात छेडी जा चुकी है, मैंने सोचा क्यों न उन दोनो गानों के बोल पेश करूँ जो शंकर जी ने "िबना साँस रोके" गाये थे?

तो लीिजए पेश-ए-िखदमत है --

-- ब्रेथलेस १ --

कोई जो िमला तो मुझे ऐसा लगता था जैसे मेरी सारी दुिनया में
गीतों की रुत और रंगों की बरखा है, खुशबू की आँधी है

महकी हुई-सी अब सारी हवाएँ हैं, महकी हुई-सी अब सारी िफजाएँ हैं,
खोई हुई-सी अब सारी िदशाएँ हैं, बदली हुई सी अब सारी अदाएँ हैं
जागी उमंगें हैं, धडक रहा है िदल साँसों में तूफाँ है, होठों पे नगमें हैं,
आखोँ में सपने हैं, सपनों में बीते हुए सारे वो लम्हें हैं

जब कोई आया था , नजरों पे छाया था , िदल में समाया था
कैसे मैं बताऊँ तुम्हें कैसा उसे पाया था,
प्यारे-से चहरे पे िबखरी जो जुल्फें तो ऐसा लगता था जैसे
कोहरे के पीछे एक ओस में धुला हुआ फूल िखला है,
जैसे बादल में एक चाँद छुपा है, और झाँक रहा है जैसे
रात के परदे में एक सवेरा है , रौशन-रौशन आँखों में सपनों का सागर
िजसमें प्रेम-िसतारों की गागर जैसे छलक रही है ,
लहरों-लहरों बात करे तो जैसे मोती बरसें
जैसे कहीं चांदी की पायल गूँजे, जैसे कहीं शीशे के जाम िगरें और छन-से टूटें,
जैसे कोई छुपके िसतार बजाए, जैसे कोई चांदनी रात में गाये,
जैसे कोई हौले से पास बुलाए...

कैसी मीठी बातें थी वो , कैसी मुलाकातें थी वो -
जब मैने जाना था नजरों से कैसे िपघलते हैं िदल और
आरजू पाती है कैसे मंिजल, और कैसे उतरता है चाँद जमीं पर,
कैसे कभी लगता है स्वर्ग अगर है तो बस है यहीं पर!
उसने बताया मुझे और समझाया मुझे -
हम जो िमले हमें ऐसे ही िमलना था ,
गुल जो िखले हैं उन्हें ऐसे ही िखलना था
जन्मों के बन्धन, जन्मों के िरशते है,
जब भी हम जनमें तो हम यूँही िमलते है

कानों में मेरे जैसे शहद-से घुलने लगे,
ख्वाबों के दर जैसे आँखों में खुलने लगे,
ख्वाबों की दुिनया जो िकतनी हसीं और कैसी रंगीं थी,
ख्वाबों की दुिनया जो कहने को थी पर कहीं भी नहीं थी़!
ख्वाब जो टूटे मेरे , आँख जो खुली मेरी,
होश जो आया मुझे, मैने देखा, मैने जाना -

वो जो कभी आया था, नजरों पे छाया था, िदल में समाया था
जा भी चुका है और िदल मेरा है अब तनहा-तनहा
न तो कोई अरमाँ है, न कोई तमन्ना , और न कोई सपना है

अब जो मेरे िदन और अब जो मेरी रातें हैं,
उनमें िसर्फ आँसू हैं , उनमें िसरफ दर्द की , रंझ की बातें हैं
और फिरयादें हैं, मेरा अब कोई नहीं,
मैं हूँ और खोए हुए प्यार की यादें हैं ---- ३

िसलिसला जारी रहेगा ----

Sunday, July 17, 2005

खटमल

कमल आकर्श के इस ब्लाग मे एस.डी.बरमन का इक अनोखे गीत का ज़िक्र किया गया था। इसी मौके पे मै पेश करता हूं, उसी धुन मे किशोरदा का 'खटमल' पर गाया हुआ यह मज़ाकिया गीत, "छुपा रुस्तम" फिलम से...

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धीरे से जाना खटियन मे... ओ खटमल
धीरे से जाना खटियन मे...

सोई है राजकुमारी... सोई है
सोई है राजकुमारी... देख रही मीठे सपने

जा जा छुप जा...
जा जा छुप जा... तकियन मे... ओ खटमल
धीरे से जाना खटियन मे...

( वीरान थी अपनी ज़िंदगी, और सूना था अपना मकान। हाए, हाए किस्मत... )
मिले मुशकिल से ये मेहमान, हो ही जाते शायद मेहरबान
मिले मुशकिल से ये मेहमान, हो ही जाते शायद मेहरबान
आग लगाती है सुखन मे... ओ खटमल
धीरे से जाना खटियन मे...

|| धीरे से... ||

कोमल है इनका बदन, काँटे सी तेरी चुबन
कोमल कोमल है इनका बदन, काँटे सी तेरी चुबन
बाधा डाले निंदियन मे...
बाधा डाले निंदियन मे... ओ खटमल
धीरे से जाना खटियन मे...

( ए ए किधर जाता है, खबर... खबरदार, हममम... छुप छुप के ? )
क्यों छुप छुप के प्यार करे तू , बडा छुपा हुआ रुस्तम है तू
क्यों छुप छुप के प्यार करे तू , बडा छुपा हुआ रुस्तम है तू
ले ले हमको भि शरण मे... ओ खटमल
धीरे से जाना खटियन मे...
|| धीरे से... ||
धीरे से... धीरे से...
धीरे से जाना... धीरे से जाना... री भंवरा
धीरे से जाना बगियन मे
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Thursday, July 14, 2005

दुिनयादारी

वैसे तो हम सच ही बोलते है
झूट बोलना वािजब लगता नही
पर िपछली अमावस की रात को जो हुअा
उसके बाद कुछ और ही लगा सही ।

लोग उनके घर की तरफ बारबार मुडते
और कहते िक अाज चॉंद बोहत रोशन है
अब सच बताने की जुर्रत कैसे करते ?
हमे हमारी जान की िफक्र जो पडी रही !

Wednesday, July 13, 2005

दर्दे-इश्क

तेरी आँखें क्यों मुडती हैं इधर रह-रहकर ?
क्या ढूँढते हो तुम मेरी िनगाहों में ?
िदखता है तुम्हें कौन से सपने का रुख
सोया हुआ इन पलकों की पनाहों में ?

सोए हुए सपनों को मत जगाओ तुम,
इनको यूहीं नींदों में उलझे रहने दो -
मासूम से ख्वाबों को िजंदगी मत दो,
जीवन को हकीकत की सजा सहने दो ।

Thursday, July 07, 2005

अक्सीर

हर अदा अापकी इतनी अनोखी िक िज़ंदगी मे हज़ार रंग िमलादे
हम जानते है हमारे पास ये एक ही दवा है जो सारी दुिनया भुलादे

अाज भी याद है अापकी अाहोंके वो नर्म झोंके
जो शोर अंग़ेज़ तूफान को भी अासानी से सुलादे

पर अब की कडवी बातें भी कुछ कम नही
जो िदल को चीर दे और रूह को भी रुलादे

िफर भी मेहरबानी है अापकी,हम नही कहेंगे िक अब बस भी किरए
क्योंिक अाप भी जानतीं है,हमारे पास ये एक ही दवा है जो सारी दुिनया भुलादे

*अक्सीर= elixir